अनुच्छेद - लेखन - Paragraph Writing

अनुच्छेद - लेखन के बारे मे 

अनुच्छेद में बहुत संक्षेप में किसी एक विषय के मुख्य बिन्दुओं (points) की चर्चा होती है। अनुच्छेद में विषय के अधिक विस्तार करने का स्थान नहीं होता। अनुच्छेद में संक्षेप में किन्तु अपने-आप में पूर्ण किसी विषय का प्रतिपादन किया जाता है। इसे सारगर्भित तथा संक्षिप्त निबंध भी माना जा सकता है, परन्तु निबंध और अनुच्छेद में मौलिक अन्तर होता है - निबंध में किसी एक विषय का पक्ष-विपक्ष का उसके विविध पहलुओं का समावेश होता है, परन्तु अनुच्छेद में विषय के सीमित पक्षों तथा कुछ ही पहलुओं का संक्षेप में वर्णन किया जाता है।

अनुच्छेद लेखन


अनुच्छेद लिखते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  • विषय से संबंधित सभी बातों को एकत्र कर लीजिए।
  • तत्पश्चात उन्हें अत्यंत संक्षेप में स्पष्ट कीजिए ।
  • किसी भी पहलू के पक्ष अथवा विपक्ष में व्याख्या या विस्तार से बचिए। () अनुच्छेद की भाषा सरल तथा व्यावहारिक होनी चाहिए।
  • इस कक्षा में 100-150 शब्दों का अनुच्छेद लिखना पर्याप्त है।

1. टेलीविजन

टेलिविजन


विज्ञान ने आज मानव को अनेक उपहार दिए हैं। दूरदर्शन भी विज्ञान का अनुपम उपहार है। दूरदर्शन शब्द अंग्रेजी शब्द टेलीविजन (television) का पर्याय है। tele-दूर और vision-देखना अर्थात् दूरदर्शन। इसके द्वारा घर पर बैठे ही बैठे अनेक घटनाओं, नाटकों, खेल-कूद तथा अन्य समारोहों को साक्षात् देखा जा सकता है। दूरदर्शन का अविष्कार श्री जे०एल० बेयर्ड ने सन् 1925 में किया था। आज टेलीविजन मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा का भी साधन बन गया है। इसके द्वारा अनेक शिक्षाप्रद नाटकों तथा कार्यक्रमों से अनेक प्रकार की बुराइयाँ दूर होती हैं। दूरदर्शन के द्वारा हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है तथा हमें अनेक प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है। इसके द्वारा हम अनेक कार्यक्रमों को घर बैठे देख सकते हैं जिन्हें देख पाना हमारे लिए संभव नहीं। ओलम्पिक, एशियाई खेल, क्रिकेट मैच, अनेक प्रकार के राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों को हम सीधे देख सकते हैं। आजकल तो सेटेलाइट के माध्यम से विदेशों के कार्यक्रम भी देखना संभव हो गया है। हमारे देश में संसद की कार्यवाही भी दूरदर्शन पर दिखाई जाने लगी है। दूरदर्शन के बढ़ते प्रयोग से इसकी कुछ हानियाँ भी सामने आ रही हैं। अधिक समय तक तथा ठीक विधि से टी०वी० न देखने पर आँखों की ज्योति क्षीण होती है। विद्यार्थी-गण टी०वी० के कार्यक्रमों में इतनी रुचि लेने लगे हैं कि उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता। टी०वी० पर जो फिल्म या चित्रहार दिखाए जाते हैं उनके दृश्य भद्दे होते हैं, जिन्हें परिवार के सभी लोग एक साथ बैठकर नहीं देख सकते। इसीलिए विद्यार्थियों को चाहिए कि दूरदर्शन के आदी न बनें और पढ़ाई के समय पर पढ़ाई ही करें। सरकार को चाहिए कि दूरदर्शन पर अच्छी, शिक्षाप्रद फिल्में तथा ऐसे कार्यक्रम दिखाने का प्रबंध करें जिससे राष्ट्रीय एकता में वृद्धि हो तथा जन जागरण हो ।

2. टेलीफोन

टेलीफ़ोन


आज के जीवन में कुछ ऐसी वस्तुएँ हैं जिनके बिना रहा नहीं जा सकता। टेलीफोन भी एक ऐसी वस्तु है। सन् 1877 ई० में ग्राहम बेल ने इसका आविष्कार किया था। तब उसने शायद यह सोचा भी न होगा कि आगे चलकर इसका इतना प्रचार-प्रसार हो जाएगा कि इसके बिना जीवन की कल्पना करना भी असंभव हो जाएगा। टेलीफोन समय, धन तथा श्रम की बचत करने का अनुपम साधन है। इसके माध्यम से घर बैठे ही अनेक काम हो सकते हैं। किसी को संदेश देना हो, अपने मित्र से बात करनी हो, डाक्टर बुलाना हो, पुलिस को कुछ सूचना देनी हो, किसी से आवश्यक जानकारी प्राप्त करनी हो, सात समंदर पार किसी से कुछ कहना हो या अग्निशमन दस्ते को बुलवाना हो, तो तुरन्त टेलीफोन घुमाइए और काम बनाइए। आजकल तो टेलीफोन व्यापार का महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है। लाखों रुपयों के सौदे, समझौते तथा लेन-देन टेलीफोन के माध्यम से किया जाता है। आजकल तो देश-विदेश के अनेक बड़े नगर सीधे ही टेलीफोन स जुड़े हैं। इन नगरों में टेलीफोन बुक कराने की आवश्यकता नहीं बल्कि सीधे नम्बर घुमाकर ऐसे बात की जा सकती है मानों बात करने वाला व्यक्ति आपके पास के कमरे में ही बैठा बातें कर रहा हो। कभी-कभी घर में फोन होना असुविधा का कारण भी बन जाता है। आस-पड़ोस के व्यक्ति बार-बार फोन करने आते हैं तथा उनके संदेश आने पर उन्हें बार-बार बुलाना भी पड़ता है। पड़ोसियों द्वारा मुफ्त में किए गए टेलीफोन के कारण बिल भी बहुत आता है। ऐसी स्थिति में जिन लोगों के यहाँ फोन लगा होता है, वे बड़ी कठिनाई में पड़ जाते हैं कि इस झंझट से कैसे मुक्ति पाएँ ?

3. समाचार-पत्र



मनुष्य में प्रारंभ से ही अपने आस-पास की घटनाओं और दूर के समाचारों को जानने की उत्सुकता रही है। वह देश-विदेश की घटनाओं की जानकारी चाहता है तथा अपने आस-पास के वातावरण की भी उपेक्षा नहीं कर सकता। समाचार-पत्र उसकी इस आवश्यकता की पूर्ति करते हैं। समाचार-पत्रों में देश-विदेश की घटनाओं तथा अनेक समाचारों का विस्तार से वर्णन रहता है। दिन निकलते ही अनेक व्यक्ति अखबार की झलक पाने को व्याकुल रहते हैं। तथा अखबार आते ही वे उसमें थोड़ी देर के लिए खो जाते हैं। संसार में आज लाखों समाचार-पत्र निकलते हैं। हमारे देश में भी विभिन्न भाषाओं के अनेक समाचार-पत्र प्रकाशित किए जाते हैं। समाचार पत्रों में केवल घटनाएँ ही हों, ऐसी बात नहीं, आजकल इनमें खेल-कूद, व्यापार, बाजार-भाव चलचित्र, रेडियो तथा दूरदर्शन के कार्यक्रमों की जानकारी तथा अनेक प्रकार के विज्ञापन भी होते हैं। आजकल तो समाचार-पत्रों के द्वारा चीजें खरीदी-बेची जाती हैं तथा वर-वधू भी ढूँढे जाते हैं। व्यापारी तथा उद्योगपति अपने नए-नए उत्पादनों के विज्ञापन समाचार-पत्रों में देकर ही उस वस्तु को लोकप्रिय बनाते हैं। समाचार-पत्रों में विज्ञापनों को पढ़कर नौकरी प्राप्त की जा सकती है। सरकार की नीतियों की जानकारी समाचार-पत्रों द्वारा ही मिलती है तथा समाचार-पत्र ही सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करके सरकार पर अंकुश लगाने का काम करते हैं। कुछ समाचार-पत्र लोगों में घृणा तथा द्वेष फैलाने के लिए समाचारों को नमक मिर्च लगाकर प्रकाशित करते हैं। जनता को इनसे सावधान रहना चाहिए।

4. परोपकार

मानव एक सामाजिक प्राणी है। परस्पर सहयोग ही सामाजिक जीवन का आधार है। पारस्परिक सहयोग के बिना समाज का कार्य सुचारु रूप से नहीं चल सकता। इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि मन, वचन और कर्म से दूसरों के हित के लिए भी प्रयास करे। तुलसीदास जी ने कहा है- 'पर हित सरिस धर्म नहिं भाई' । प्रकृति का कण-कण परोपकार में लगा हुआ है। सूर्य खुद जलकर दूसरों को प्रकाश देता है, वृक्ष स्वयं धूप सहकर पथिक को छाया प्रदान करते हैं, पेड़ अपने फल स्वयं नहीं खाते, नदी अपना पानी स्वयं नहीं पीती आदि। जो व्यक्ति केवल स्वार्थ में लिप्त है, वह पशु के समान है। परोपकार के कारण ही ईसा मसीह सूली पर चढ़े, परोपकार के लिए ही सुकरात ने ज़हर पिया तथा गाँधी ने गोलियाँ खाईं। मदर टेरेसा ने परोपकार के कारण ही अपना जीवन दीन-दुखियों की सेवा में लगा दिया है। भारतीय संस्कृति में परोपकार को मानव कर्त्तव्य बताया गया है। हमारी संस्कृति में सबके सुख तथा सबके कल्याण की कामना की जाती है तथा पूरी पृथ्वी को ही एक कुटुम्ब के रूप में माना जाता है। सच्चा मनुष्य वही है जो स्वयं के लिए ही न जिए अपितु अपने जीवन काल में परोपकार भी करे। जिस देश में परोपकारी मनुष्य होते हैं, वह सदैव उन्नति को प्राप्त करता है।

5. भारतीय किसान



भगवान विष्णु यदि सृष्टि के पालक हैं तो मानव समाज का पालन किसान का धर्म है। किसान कर्मयोगी की भाँति मिट्टी से सोना उत्पन्न करता है तथा रूखा-सूखा खाकर संतुष्ट रहता है। दूसरों का पेट भरकर ही वह अपनी साधना में लीन रहता है। दुःख उसके जीवन का साथी है, तपस्या उसके जीवन का उद्देश्य है, परोपकार उसके जीवन का लक्ष्य है तथा परिश्रम उसके जीवन का अंग है। वह अपनी दरिद्रता में ही प्रसन्न है तथा वह अपनी झोपड़ी में रहकर ही आनंदित है। वह कड़कती धूप में, कँपा देने वाली सर्दी में, घनघोर वर्षा में अपने खेतों पर काम करता है और एक कर्मयोगी की भाँति अपने काम में लगा रहता है। जब सब लोग निद्रा में मग्न होते हैं, किसान अपने हल और बैलों को लेकर खेत में काम कर रहा होता है, जब सब लोग अपने परिवार के साथ आनंद मनाते हैं, किसान अपने खेतों में संसार के लिए अन्न उगाता है। वह ब्रह्म मुहूर्त में उठता है और संध्या को घर लौटता है। उसका समग्र जीवन साहस का उदाहरण है, त्याग से परिपूर्ण है और संतोष से ओत-प्रोत है। भारतीय किसान सच्चे अर्थों में भगवान का प्रतिनिधि हैं। अशिक्षित और सीधा-सादा भारत का किसान धर्म-भीरू भी है। उसके उगाए अन्न से सेठ साहूकार अपनी तिजोरियाँ भरते हैं, पर उसके हाथ लगते हैं। गिने-चुने सिक्के जिनसे उसका जीवन भी मुश्किल से चल पाता है। न उसे लोभ है, न लालच; उसमें न बेईमानी है, न छल-कपट; न उसमें आलस्य है, न कायरता । हाँ, वह ऋणग्रस्त, निर्धन तथा अभावग्रस्त अवश्य है। नए जमाने की हवा उसे अभी तक छू नहीं पाई है, फैशन से तो वह कोसों दूर है। दधीचि ने जिस प्रकार अपनी अस्थियाँ देवताओं को स्वेच्छा से दे दी थी, उसी तरह लगता है किसान ने अपना सारा जीवन दूसरों को समर्पित कर रखा है। इसीलिए कवि ने ठीक ही कहा है- 'कृषक देश के प्राण और खेतों की कल हैं।

6. गंगा



गंगा भारत की उन प्राचीनतम नदियों में से है जिन पर भारतवासियों को बहुत श्रद्धा रही है। गंगा केवल एक नदी ही नहीं है बल्कि इसका संबंध भारत की संस्कृति तथा इतिहास से जुड़ा है। यह पवित्र नदी प्रत्येक भारतवासी के लिए अत्यंत पवित्र तथा पूज्य है। भौगोलिक दृष्टि से इसी नदी ने उत्तरी भारत के विशाल उपजाऊ मैदान को बनाया है तथा भारत भूमि को धन-धान्य से पूर्ण किया है। हिमालय के गंगोत्री नामक स्थान से निकलकर वह समूचे भारत को अपने अमृत-जल से सींचती हुई, हजारों तट पर प्राचीन काल में हमारी सभ्यता और संस्कृति का विकास हुआ था । इसी के किनारे बैठकर हमारे ऋषि-मुनियों ने अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की। गंगा नदी के तट पर अनेक तीर्थ स्थान जैसे- हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी, प्रयाग आदि हैं। इसी के किनारे कानपुर, कलकत्ता जैसे बड़े औद्योगिक नगर भी स्थित हैं। भारत में गंगा को देवी-देवता के समान पवित्र समझा जाता है तथा इसमें स्नान करने को पवित्र माना जाता है । इसका पवित्र जल अनेक धार्मिक उत्सवों तथा पवित्र कार्यों में प्रयोग किया जाता है। कहा जाता है कि भगीरथ गंगा को पृथ्वी पर लाए थे। इसीलिए इसका नाम भगीरथी भी है। कुछ भी हो गंगा न जाने कब से भारतीयों के कल्याण में निरंतर बह रही है।

7. लाल किला



भारत की राजधानी दिल्ली में अनेक इमारतें हैं परन्तु लाल किला उन में सर्वश्रेष्ठ है। यह दिल्ली के चाँदनी चौक के अंत में स्थित है। इसके पीछे यमुना नदी बहती है। लाल किले का निर्माण मुगल काल के कला प्रेमी शासक शाहजहाँ ने सन् 1648 में करवाया था । लाल किले में दो बड़े प्रांगण हैं- दीवाने आम तथा दीवाने खास । दीवाने आम में शहंशाह शाहजहाँ दरबार लगाया करता था तथा जनता की आम शिकायतें सुना करता था । लालकिले के दीवाने खास में शाहजहाँ का व्यक्तिगत निवास था जहाँ आम जनता नहीं जाती थी। लाल किले की नक्काशी मुगलकालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। लाल किले में तख्ते ताउस भी था जिस पर बैठकर शाहजहाँ दरबार लगाया करता था। कहा जाता है कि लाल किले में अनेक हीरे, जवाहरात आदि जड़े थे जिन्हें विदेशी लुटेरे लूटकर अपने साथ ले गए। आजकल लाल किले में एक संग्रहालय बना दिया गया है जिसमें मुगल काल से संबंधित अनेक दुर्लभ वस्तुएँ रखी गई हैं। इसी संग्रहालय में मुगलकालीन हथियार भी दिखाए गए हैं। लाल किले में एक ओर मोती मस्जिद भी है। लाल किले में प्रवेश करते ही एक बाजार भी बना दिया गया है जिसमें अनेक कलात्मक चीजें बिकती हैं। अनेक विदेशी पर्यटक इसे देखने आते हैं। 15 अगस्त को प्रतिवर्ष लाल किले पर ही देश के प्रधानमंत्री तिरंगा फहराते हैं ।

8. ताजमहल



भारत के दर्शनीय स्थलों में ताजमहल का नाम अग्रगण्य है। ताज के अनुपम सौन्दर्य को देखकर विदेशी पर्यटक दाँतों तले अंगुली दबा लेते हैं। ताजमहल उत्तर प्रदेश में आगरा में यमुना के तट पर स्थित है तथा सफेद संगमरमर से निर्मित है। ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहाँ ने करवाया था। इसके निर्माण के पीछे एक कहानी है। शाहजहाँ अपनी बेगम मुमताज महल से बेहद प्यार करता था। एक बार वह बीमार पड़ गई तथा उसके बचने की कोई उम्मीद न रही। शाहजहाँ ने उससे उसकी अंतिम इच्छा पूछी तो उसने कहा कि मेरी याद में कोई ऐसी वस्तु बनवाना जिससे वह अमर हो जाए। शाहजहाँ ने अपनी बेगम की स्मृति में ताजमहल का निर्माण करवाया। इसके निर्माण में 20 सहस्र मजदूरों ने लगभग 22 वर्षों तक परिश्रम किया। ताजमहल का प्रवेश द्वार लाल पत्थरों का है जिस पर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं। थोड़ा-सा आगे चलने पर दोनों ओर वृक्षों की कतारें हैं और पानी के फव्वारे हैं। इनके आगे संगमरमर से निर्मित ताजमहल है। इसके चारों कोनों पर संगमरमर की चार मीनारें हैं । ताजमहल में मुमताज महल तथा शाहजहाँ की कब्रें हैं। शरद पूर्णिमा के दिन चाँदनी रात में इसका सौन्दर्य और भी बढ़ जाता है। ताज अपनी सुन्दरता, सजावट और कारीगरी के कारण दुनिया की सबसे सुंदर इमारतों में गिना जाता है। ताजमहल को देखकर फर्गुसन ने ठीक ही कहा था- 'ताज पत्थर में प्रेम का प्रतीक है।'

19 प्रदूषण (Pollution)



आज के युग को विज्ञान का युग कहा जाता है। आज मनुष्य ने पृथ्वी, आकाश तथा जल पर अपना आधिपत्य जमा लिया है। तथा मनुष्य की सुख सुविधा के लिए अनेक मशीनों तथा आविष्कारों को जन्म दिया है। समय की गति के साथ-साथ जनसंख्या में भी लगातार वृद्धि हुई है। जनसंख्या की वृद्धि के कारण उसने प्राकृतिक वनों को काट-काटकर या तो उद्योग धंधों का विस्तार किया है या रहने के लिए स्थान बनाए हैं। वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ गया है। वर्षा, जलवायु तथा भूमि पर इसका दुष्प्रभाव पड़ा है। वनों के कारण वातावरण शुद्ध रहता था, पर आज मिलों की चिमनियों से निकलते धुएँ तथा मिलों से बहने वाले पदार्थों से वातावरण प्रदूषित हो गया यही प्रदूषण है। नगरों में बसों, ट्रकों तथा अन्य वाहनों से धुआँ निकलता है जिससे अनेक प्रकार के रोग हो रहे हैं। फेफड़ों के रोग, रक्त या चर्म के रोग बढ़ते जा रहे हैं। धुएँ में जहरीले पदार्थ होते है जो साँस के द्वारा हमारे शरीर में पहुँच जाते हैं। इसी प्रकार मिलों से बेकार हो जाने वाला पदार्थ नदियों में बहा दिया जाता है । जिससे पानी प्रदूषित हो जाता है, जिसे पीने से अनेक प्रकार के रोग हो रहे हैं। प्रदूषण की समस्या बहुत भयंकर समस्या है। वनों की अंधा-धुंध कटाई पर रोक लगाई जानी चाहिए तथा वृक्षारोपण पर बल दिया जाना चाहिए- इससे प्रदूषण कम होता जाएगा क्योंकि वृक्ष दूषित वायु (कार्बनडाई ऑक्साइड) को लेकर शुद्ध वायु (आक्सीजन) प्रदान करते हैं। इसके दूर स्थापित करने के लिए कानून बनाए, क्योंकि प्रदूषण का दुष्प्रभाव शहरों पर ही अधिक पड़ता है। हम सब का भी यह कर्त्तव्य है कि हम वृक्षारोपण के महत्व को समझे तथा नए-नए वृक्ष लगाएँ ।

10. 'मधुर वचन है औषधि



किसी कवि ने कहा है-

'कौआ किसका धन हर लेता, कोयल किसको दे देती है, केवल मीठे बोल सुनाकर, बस में सबको कर लेती है।'

- कवि की बात 'अक्षरशः सत्य है। मधुर वचन वास्तव में ऐसी औषधि है जिससे हम सभी को अपने वंश में कर सकते हैं। जब हम मीठी वाणी सुनते हैं तो हमारा हृदय प्रसन्न हो उठता है तथा बात कहने वाले की हर बात मानने के लिए तैयार हो जाते हैं। किसी बोलने मात्र से ही यह भली-भाँति पता चल जाता है कि बोलने वाला सज्जन है या दुर्जन क्योंकि सज्जन हमेशा मधुर वाणी का ही प्रयोग करते हैं जबकि दुर्जनों की वाणी कर्कश होती है। मधुर वाणी रूठों को मना सकती है, बिगड़े काम बना सकती है, शत्रु को मित्र बना सकती है तथा सभी को मंत्र मुग्ध कर सकती है। मधुर वाणी को सुनकर मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी खिंचे चले आते हैं। मधुर वचनों से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। इसके विपरीत कडुए वचनों से मित्र भी शत्रु बन जाते हैं। व्यक्ति को कुछ बोलने से पहले अपने वचनों को हृदय के तराजू पर तौल लेना चाहिए क्योंकि किसी ने ठीक ही कहा है- 'हाथ का चूका फिर मारे, बात का चूका सिर मारे । कडुवी बात हमारे हृदय में प्रवेश करके चुभती रहती है। द्रौपदी द्वारा कहा गया एक कडवा वाक्य 'अंधों के अंधे ही पैदा होते हैं' दुर्योधन के हृदय में इस प्रकार जाकर बैठ गया कि महाभारत के युद्ध का कारण बना। जिसने भी अपनी वाणी को वश में करके मधुर वचनों का प्रयोग करना सीख लिया, मानो उसने सब कुछ पा लिया। आजकल बड़े-बड़े नेता भी वाणी के बल पर जनता को अपने पक्ष में कर लेते हैं। मधुर वचनों में वह आकर्षण है जो बिना रस्सी के ही सभी को बाँध लेता है।

निष्कर्ष: आशा है की आपको ये लेख समझ आया होगा। कमेंट करके बताएं 

Hari Mohan

नमस्कार दोस्तों। मेरा मुख्य उद्देश्य इंटरनेट के माध्यम से आप तक अधिक से अधिक ज्ञान प्रदान करवाना है

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